दोस्तो कुछ काव्य रचनाएँ जो कभी बहुत पहले लिखीं थी आज आप लोगों के साथ बाँटना चाहता
हूँ...''कुछ अनकही''...और आशा करता हूँ आप सबको यह पसंद आएँगी और आप सब की हौंसला
अफ़साई इस में और इज़ाफ़ा करने में पूर्णतया सहायक होगी........
हूँ...''कुछ अनकही''...और आशा करता हूँ आप सबको यह पसंद आएँगी और आप सब की हौंसला
अफ़साई इस में और इज़ाफ़ा करने में पूर्णतया सहायक होगी........
कुरेदो किसी भी इंसान को, अपना सा लगता है
दिल में उसके भी ,एक जख्म कहीं पलता है
हर शख्स दोहरी सी जिंदगी जीता है
हंसता है महफ़िल में,अक्सर अकेले में रोता है
सारी दुनिया से जीत जाता है,
लेकिन अपनों से ही हमेशा हारता है
पूछो उससे तो कहता है,
वो तो दुनिया भर का मज़ा मारता है
आस का पंछी दूर डाल पर होता है
ना ही उड़ता है और ना हाथ आता है
दर्द हर इंसान का,इंसान अपने सा ही पाता है
इंसान फिर भी ना जाने क्यों जीना चाहता है?
........यशपाल भाटिया [26दिसंबर,1997]
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