गुरुवार, 6 जून 2013


     ''कुछ अनकही''

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क्या ग़लत है क्या सही

यह सोचते सोचते ही ,

हम ने जिंदगी गुज़ार दी


इसलिए कुछ ना किया,

न ग़लत न सही


ऊपर वाले ने जो भी जिंदगी दी

लगता है सब बेकार गई

तमन्नाएँ जितनी भी थी 

या तो गैर क़ानूनी थी या

उसने किसी और की झोली में डाल दी


इसलिए कुछ नहीं किया

न ग़लत न सही


जिंदगी में शायद अब

कोई तमन्ना और ना रही!!

...................यशपाल भाटिया [26दिसंबर,1997]